मसला टूटी सड़कों का है , गड्ढों में भरे बारिश के पानी का है।
मसला इस मूसलाधार बारिश में मिटटी के घरों के ढह जाने का है।
मसला ……… खुले मैनहोल और आय -दिन उसमे गिर के अपनी जान गवाने वालों का है।
अमीरों को अपने देश से बाहर भागने का मसला है !
तो बच्चों को किताबों के बोझ का मसला है,
और फिर टीचरों को TET एग्जाम पास करने का मसला भी है … !
इधर नौकरीपेशा को बढ़ते खर्चों का मसला है तो ,
उधर गरीब को डायन महंगाई का मसला है ।
और सरकारों को ….. अपनी कुर्सी बचाने का मसला है।
मसला ये भी है की वो क्या चाहते हैं ,
मसला ये भी है की हम क्या चाहते हैं ?
तो किसी के मर्म को समझना भी एक मसला है।
सरकारें आईं और गईं पर मसला वहीँ का वहीँ ,
किसी का कुछ मसला , तो किसी का कुछ ,
पर इन् मसलों को हल करना भी एक मसला है।
मसले की बहोत अच्छी,👌 रचना करने के लिये आपका धन्यवाद ?
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मसले की बहोत अच्छी👌, रचना करने के लिए आपका बहोत धन्यवाद 🙏!
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🙏
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बहुत खूबसूरत तरीके से बड़ी गंभीर बात सामने रखा है। मुझे बहुत पसंद आया ये कविता।
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बहुत धन्यवाद आपका । अभी समय ही ऐसा चल रहा है की आम आदमी के वोट और टैक्स की अनदेखी कर राजनेता सिर्फ अपनी जेबें ही भरने में मशगूल हैं।
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बिल्कुल सही बात। लेकिन चिंता की बात नहीं है । चुनाव भी जल्दी ही आयेगा । तब सवाल किया जाएगा हमारे नेताओं से की अब तक कहां थे ? जब संकट हमारे ऊपर अता है तो आप गायब रहते हो और चुनाव के समय आये हो ।
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हाँ , बिलकुल सही बात है।
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