एकांत

एकांत ! बहुत ढूंढा तुम्हे , बहुत याद किया !

तुम्हारा ये छुपन छुपाई का खेल बहुत लंबा चला। 

पर आखिर आमना  सामना हो ही गया हमारा। 

अब् जब तुम मिले हो तो मुस्कान अधरों पर  टिक सी गई है।  

न जाने क्यों तुम्हारे साथ में एक सुकून है, जो और कहीं नहीं।

एक तुम हो और एक ये हल्की धुप है माथे पे ,

और वही शहर , और भी ज़्यादा सुन्दर लगने  लगा है। 

तुम्हारे साथ में, इस मशीन और पहियों के शोर में भी चिड़ियों की चहचहाहट और 

पत्तों के ऊपर से गुज़रती  हवा की  आवाज़  सुनाई दे रही  है मुझे।

कितना कठिन था हर वक़्त भीड़ में घिरे रहना !

शरीर थक सा गया है बहुत, पर कुछ तो है तुम्हारे साथ मे की मन अब भी उन्माद में है। 

 

एकांत !

क्या ये पल ठहर जायेगा यु ही तुम्हारे साथ में , जैसे पल रुक जाते हैं तस्वीरों में ?

या की फिर तुम भी चंचल हो स्वाभाव में, और तुम्हारा ये लुका छिपी का खेल फिर से चलेगा !!

 

 

 

 

 

3 thoughts on “एकांत

  1. ये बनारस वाले लिखते बहुत अच्छे हैं। WP पे काफी बनारसी ब्लॉगर मित्र है मेरे। अधिकांशतः

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    1. बहुत धन्यवाद आपका , सुन कर अच्छा लगा की बनारस के लोगों की लेखनी आपको पसंद आती है।

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