कुछ छूट गया है मेरा वहाँ 

कुछ छूट गया है मेरा वहाँ 

उन सर्पीले रास्तों पर ,

उन विषालकाय पहाड़ों पर ,

शायद मुट्ठी भर सांसे छूट गई  है मेरी।  

उस तीखी धूप में 

सीधे धमाचौकड़ी मारते बादलों पर ,

शायद कुछ जिल्द छूट गई है मेरी । 

उन  मुस्कुराते चेहरों के साथ ,

उस अपनेपन के साथ ,

शायद कुछ मन छूट गया है मेरा।  

उस बेसाख़्ता दहाड़ती नदी के पास 

उन् गहरी खाइयों के पास ,

शायद कुछ डर छूट गया है मेरा। 

उन देशों को बाँटती रेखाओं में ,

मन छूट गया है मेरा। 

कुछ तो छूट गया है मेरा वहाँ 

उन बंजर, निर्भीक और दृढ़  पहाड़ों पर ,

कुछ गहरी सांसे छूट गईं है मेरी।  

उन गुनगुनाते रास्तों , और नाचते पशु -पक्षियों  के पास 

कुछ शब्द छूट गए हैं मेरे।  

उस सिंधु के बहते पानी में 

कुछ  तलवटों  की जिल्द छूट गई है मेरी  । 

उन बरसते बादलों पर ,

कुछ तो शब्द – निःशब्द सा छूट गया है मेरा वहाँ।  

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उम्र

उम्र क्या है ?

एक ख़ाली पन्ने पे लिखे हुए कुछ अंक ?

कुछ  सपनों की गठरी ?

कुछ ज़िम्मेदारियों का निर्वाहन ?

या फिर कुछ हसींन फ़सानों की दास्तान…..,


उम्र 

जिल्द के सिकुड़ने की कहानी ,

या इन् लटों के सफ़ेद होने की तैयारी ,

या फिर अपनी अंतिम यात्रा कैसी होगी , इसकी तैयारी……


क्या है उम्र ?

शायद “लोग क्या कहेंगे”, से भी फर्क न पड़ने की कहानी। 

शायद सब भूल कर अपनों और अपने आप को माफ़ कर देने की कहानी।

शायद नए सपने देखने की हिम्मत 

या फ़िर शायद बच्चों के संग बच्चा बन जाने की कहानी। 

 
पता नहीं उम्र क्या है…,
शायद इन् सबके बीच का फ़लसफ़ा है  ये उम्र। 

कुछ ऐसा है की ,
बिटिया को इश्क़ तो इस शहर से अब भी वैसे ही है ,
पर ,
बिटिया का घर अब इस शहर में वैसा नहीं है।

सपने देखने का हक़ मुझे  भी है। 

सपने देखने का हक़ मुझे  भी है।  

उस चाँद को छू लेने का हक़ मुझे  भी है। 
इस सूरज को आँख दिखा देने का हक़ मुझे भी है।

 सपने देखने का हक़ मुझे भी है।  

इन् हवाओँ के साथ उड़ने का हक़ मुझे भी है,

अपनी इस मुट्ठी में सारा जहाँ क़ैद कर लेने का हक़ मुझे भी है 
किरणों की तरह रोशन होने का हक़ मुझे भी है। 

अपने सपनो को संजोने का हक़ मुझे भी है,

सपने देखने का हक़ मुझे भी है। 

हो रहा तांडव है। 

टूटती हुई साँसें हैं। 

बिखरे हुए परिवार हैं। 

मूक सत्ताधारी दर्शक हैं।  
बधिर सरकार है।  

हो रहा तांडव है।  


अपनों को कफ़न में लपेटे लाइनों में खड़े लोग है।  

रोते – बिलखते अनाथ हो चुके बच्चे हैं। 

हो रहा तांडव है।  

अपनों को कुछ भी करके बचा लेने की ज़िद है,

पर सब कुछ लील जाने की इस वायरस की तैयारी है।  

एक – एक दवाई को मुँह ताकती बेबस आँखे हैं, 

दुनिया के सामने सांसों की भीख मांगता देश है।    

हो रहा तांडव है।  

हो रहा तांडव है। 

कुछ  यूँ करना तुम।

कुछ  यूँ करना  तुम।

की यहीं लाना मुझे।  

अगर ना  ला सके, तो यहीं दफनाना तुम,

अगर ना  दफना सके, तो यहीं जलाना तुम,

अगर ना जला सके, तो यहीं बहाना तुम,

कुछ ऐसा करना तुम !!

तो भी कम है|

मैं जितना भी तुम्हें देखूँ , कम है।

मैं जितना भी तुम्हें निहारूं , कम है।

मैं ख़ुद को भी भूल जाऊँ तुममें , तो कम है।

मैं रोज़ तुम्हारे लिए सजूं , तो भी कम है।

मैं रोज़ शाम , चौखट पर इंतज़ार करूँ तुम्हारा तो भी कम है।

मैं कितना भी इश्क़ करूँ तुमसे , कम है।

हर रोज़ बादलों के पीछे ढूंढूं तुम्हे ,

तुम्हारे इतने रंगों में से किसी रंग में खो जाऊँ मैं , तो भी कम है।

कभी क्षय न हो चांदनी तुम्हारी , व्रत -उपवास करूँ मैं ,

तुम्हे ही अपना प्रिय बनाऊं , वो भी कम है।

मैं हर रोज़ निहारूं तुम्हें, तो भी कम है।

माँ के लिए, मैं फिर आऊँगी!

अगर कभी मैं घर वापस ना आ पाऊं ,

अगर कभी मेरी लाश या अधजलि लाश तुम तक पहुंचे ,

अगर कभी मेरे शरीर के टुकड़े कूड़े के ढ़ेर या नाले में पड़े मिले ,

जब कभी तुम्हारी कोख और मेरी मौत की कीमत लगायी जाये।

एक भी आंसू ना बहाना तुम।

चीथड़े कर दिए गए मेरे शरीर का, शोक मत मनाना तुम ,

धीरज रखना और मेरा इंतज़ार करना तुम।

क्यूंकि ये शरीर जला है , मेरी आत्मा नहीं।

मैं फिर आऊँगी , मैं तब तक आऊँगी,

जब तक मैं काली बन अपने बहे हर ख़ून की बूँद का बदला, इनका रक्त-पान कर ना ले लूँ।

मैं तब तक आऊँगी,

जब तक मैं परशुराम का क्रोध बन अपनी कुल्हाड़ी से इनका सिर धड़ से अलग ना कर दूँ ,

मैं तब तक आऊँगी,

माँ ! मैं फिर आऊँगी।

धीरज रखना, और मेरा इंतज़ार करना तुम।

ऐसे देश में !

जिस देश की सरकार राममंदिर बनवाने और स्टेशनों का नाम बदलने में करोड़ो ख़र्च करने में व्यस्त हो ,

जिस देश की जनता Rape, Molestation, Moral-Policing and Eve-Teasing में व्यस्त हो,

जहाँ पुलिस जनता की सुरक्षा करने के बजाय केस की लीपा-पोती में व्यस्त हो ,

जहाँ के न्यायाधीश के शब्द हों ” Rape is a natural urge in Men”.

वह देश मेरा नहीं,

ऐसे देश में , ऐसे शहर में, बेटियों का जन्म लेना भी दुखद है !