कुछ छूट गया है मेरा वहाँ
उन सर्पीले रास्तों पर ,
उन विषालकाय पहाड़ों पर ,
शायद मुट्ठी भर सांसे छूट गई है मेरी।
उस तीखी धूप में
सीधे धमाचौकड़ी मारते बादलों पर ,
शायद कुछ जिल्द छूट गई है मेरी ।
उन मुस्कुराते चेहरों के साथ ,
उस अपनेपन के साथ ,
शायद कुछ मन छूट गया है मेरा।
उस बेसाख़्ता दहाड़ती नदी के पास
उन् गहरी खाइयों के पास ,
शायद कुछ डर छूट गया है मेरा।
उन देशों को बाँटती रेखाओं में ,
मन छूट गया है मेरा।
कुछ तो छूट गया है मेरा वहाँ
उन बंजर, निर्भीक और दृढ़ पहाड़ों पर ,
कुछ गहरी सांसे छूट गईं है मेरी।
उन गुनगुनाते रास्तों , और नाचते पशु -पक्षियों के पास
कुछ शब्द छूट गए हैं मेरे।
उस सिंधु के बहते पानी में
कुछ तलवटों की जिल्द छूट गई है मेरी ।
उन बरसते बादलों पर ,
कुछ तो शब्द – निःशब्द सा छूट गया है मेरा वहाँ।