आज कोई चेहरा दिखा , उम्र के कई पड़ाव पार किये हुए।
जिल्द सिकुड़ सी गई थी उसकी।
और पेट पलने के लिए कांपते हाथों से काम किये जा रहा था वो.
जब गौर से देखा उस चेहरे की तरफ तो लगा ऐसे ही किसी चेहरे के साथ बचपन बिताया था मैंने अपना ।
धुंधले चश्मे और कांपती आवाज़ में बोला उन्होंने , बेटा क्या लोगे?
और निःशब्द खड़ी रही मै।
तभी अचानक अपने हिस्से का आम भी मुझे दे दिया, कह कर की ये ज़्यादा मीठे हैं |
और तब भी निःशब्द ही रही मै !