मजदूर !

मजदूर हूँ मैं , और क्या पहचान है मेरी तुम्हारे लिए ?

तुम्हारे हाथ की कठपुतली हूँ मैं।

 

लोकतंत्र के तिलकधारियों ,

तुम्हारे वोट बैंक को हमने भरा 

और जब हमारी मदद करने की बारी आई तो ,

तुमने हमें सड़कों पर , रेलगाड़ियों के निचे और हमारे अजन्मे बच्चे को नालियों में मरने के लिए छोड़ दिया ??

इससे ज़्यादा ध्यान तो हम हमारे भेड़ -बकरियों का रखते हैं। 

 

अब् तुम्हारे इन् रहत पैकेजों का क्या करें हम जब हमारे अपने ही हमारे बीच  नहीं रहे। ..!

जो निकले थे अपने घरों की तलाश में , उन्हें क्या पता था 

की दिनों तक भूखे -प्यासे चिलचिलाती धुप में चलते रहने के बाद ,

एक दिन इन्हीं राहों में, पैरों में छाले और आँखों में घर तक जाने की इच्छा लिए वो आखरी साँस लेंगे। ..

 

क्या तुम्हारे टीवी पर किये खोखले भाषण और झूठे वादे , ज़िंदा कर पाएंगे उन्हें ?

क्या भेज पाएंगे उन्हें घर जहा अब भी कोई भीगी आँखों से उनका इंतज़ार कर रहा है। ..

जहाँ अब तक चूल्हा नहीं जला क्यूंकि , जो निकले थे घर से की घर का चूल्हा जलता रहे , अब् कभी घर वापस नहीं जा सकेंगे। .

 

क्या ये लोकतंत्र के तानाशाह वापस ला पाएंगे ?

उस अजन्मे बच्चे को जो इस दुनिया में आने से पहले ही आप की तानाशाही की भेट चढ़ गया?

क्या कम कर सकेंगे उस माँ का दुःख जिसकी  गोद भरते ही सुनी हो गई??

विदेशों में विमान भेजने की सुविधा देने वाले , अपने ही देश में बसें भी नहीं चला सकते थे ??

विदेशियों से ज़्यादा खतरा तो हमें अंदरूनी दुश्मनो से है।  

 

पर अबकी बार भी चुनाव होंगे और फिर  आएंगे आप  गिड़गिड़ाते हुए हमारे सामने झोली फैलाये। .

तब पूछूंगा मैं , एक चुनाव के प्यादे से ज़्यादा क्या पहचान है मेरी आपके लिए ??

 

 

“ख़ैर किसी भी तरह की ऊँची सोच राजनेताओं से अनअपेक्षित ही है , परन्तु इन् सभी सवालों के लिए राजनेता उत्तरदाई तो अवश्य ही हैं !”

 

 

15 thoughts on “मजदूर !

  1. इनकी पीड़ा को शब्दों में पिरोया नहीं जा सकता परन्तु कुछ प्रश्न हैं जिनके जवाब राजनेताओं को तो देने ही पड़ेंगे । .

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    1. और वो जवाब हमें कभी संतुष्ट नहीं कर पाएंगे क्योंकि वो जो भी वक्तव्य कहेंगे कुर्सी के मोह में बंधकर कहेंगे बस।

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