अगर कभी मैं घर वापस ना आ पाऊं ,
अगर कभी मेरी लाश या अधजलि लाश तुम तक पहुंचे ,
अगर कभी मेरे शरीर के टुकड़े कूड़े के ढ़ेर या नाले में पड़े मिले ,
जब कभी तुम्हारी कोख और मेरी मौत की कीमत लगायी जाये।
एक भी आंसू ना बहाना तुम।
चीथड़े कर दिए गए मेरे शरीर का, शोक मत मनाना तुम ,
धीरज रखना और मेरा इंतज़ार करना तुम।
क्यूंकि ये शरीर जला है , मेरी आत्मा नहीं।
मैं फिर आऊँगी , मैं तब तक आऊँगी,
जब तक मैं काली बन अपने बहे हर ख़ून की बूँद का बदला, इनका रक्त-पान कर ना ले लूँ।
मैं तब तक आऊँगी,
जब तक मैं परशुराम का क्रोध बन अपनी कुल्हाड़ी से इनका सिर धड़ से अलग ना कर दूँ ,
मैं तब तक आऊँगी,
माँ ! मैं फिर आऊँगी।
धीरज रखना, और मेरा इंतज़ार करना तुम।
सुन्दर भवाभिव्यक्ति 🌿🌿
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बहुत धन्यवाद आपका।
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👌👌
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भगवद महापुराण में भी कुछ एैसा ही लिखा है कलिक अवतार के बारे में।
बहुत ही दर्दनाक है लेकिन शब्दों को बेहतरीन तरीके से शब्दों में पिरोया है। आज के हालात के बारे में।🌺😊
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कुछ लिखने जैसा अब बचा नहीं है। .. 😦
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👍
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