उड़ने की चाह है ,
इस सिंदूरी शाम को, अपने अंको में भर लेने की चाह है !
उड़ने की चाह है !
इस अविरल आसमान में , पक्षियों संग अनवरत उड़ने की चाह है.
इस शून्य अंतरिक्ष को , अपने पंखों से नाप लेने की चाह है।
उड़ने की चाह है ,
बांध सके ना कोई मुझे भरण – पोषण के बंधनो में ,
कुछ ऐसे उड़ने की चाह है !
ये घना अँधेरा , रात्रि के पहर का भी,
रोक ना पाए मुझे , इस संध्या सखी को अपने अंको में बांधने से
कुछ ऐसे उड़ने की चाह है !
कभी ना रुकू, ना कभी थकूं ,
इस साँझ को निहारते ,
कुछ ऐसे उड़ने की चाह है !
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Published by Sandhya Pandey
I am an IT professional with an iconoclast brain and female chauvinist personality. :)
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Very Motivational & beautiful line’s❣
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धन्यवाद !! 🙂
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बहुत सुंदर ।
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बहुत धन्यवाद आपका। .
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