बहुत दिनों से बंद थी किवाड़।
आज अचानक ही लगा की देखूँ ज़रा बाहर।
कुछ धुंधली सी थी किवाड़।
खींच के खोलने की कोशिश की तो पाया की एक नहीं दो किवाड़ थी वहाँ।
पहले को खोला तो आसमान थोड़ा साफ़ नज़र आया.
और हिम्मत करके जब दूसरे को खोला तो ठंडी हवा का झोंका पुरे कमरे में भर गया,
जैसे वो वो बस किवाड़ खुलने के इंतज़ार में ही था.
पर इस मन की किवाड़ को कैसे खोलूं जहा एक या दो नहीं बल्कि अनगिनत किवाड़ हैं,
जो खींच के खुलने वाले नहीं।
और बस इसी अनमने भाव से दुबारा बंद कर दी मैंने किवाड़!!